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भारतीय जनता पार्टी: चाल, चरित्र और चेहरा

Salman Ka Blog
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भारतीय जनता पार्टी: चाल, चरित्र और चेहरा

चाल, चरित्र और चेहरा बदला-बदला सा लग रहा है। यह वह चेहरा नहीं है जो अमूमन दिखाई देता है और न ही वह चरित्र और चाल जिसकी दुहाई देते भारतीय जनता पार्टी थकती नहीं थी। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को अपने इस चाल, चेहरे और चरित्र पर बेहद गुमान था। लेकिन अब चेहरा बदला-बदला नजर आ रहा है और चाल व चरित्र भी। भाजपा के चेहरे पर गोल टोपी है और उसके कंधे पर चारख़ाने की बनी लाल-काले रंगों का वह गमछा जो अमूमन मुसलमानों की पहचान हुआ करता है।

चाल, चरित्र और चेहरे की दुहाई देने वाली भाजपा ने बिहार में मुसलमानों को रिझाने के लिए इफ्तार पार्टी दी, उलेमाओं को गले लगाया और ‘मजहब’ को लेकर ऐसी-ऐसी बातें कहीं जो धर्मनिरपेक्षता की अलमबरदार दूसरी पार्टियों ने भी आज तक नहीं की होगी।
भाजपा का यह सेक्युलर चेहरा अमूमन चुनावों के वक्त ही दिखता है। इस बार भाजपा का यह चेहरा पहले से कहीं उदार दिखाई दे रहा था। सर पर सफÞेद गोल टोपी, कंधे पर लाल और काले रंग के चारखाने का गमछा, होंठों पर मुस्कान और जबान शहद से भी ज्यादा मीठी। इन चेहरों पर दिलों पर खुदी इबारत का कहीं कोई अक्स दिखाई नहीं दे रहा था। शायद राजनीति की कालिख ने उस इबारत को छुपा कर उस उजले चेहरे को ही हमारे सामने ला खड़ा किया था जो मजहब को इंसानियत से जोड़ कर देखने की बात कर रहा था। इन चेहरों को इससे पहले मुसलमानों के ख़िलाफ बारहा बोलते सुना-देखा है। मुसलमानों के हर सवाल पर यह चेहरा उग्र हो कर हिंदुत्व की दुहाई देने लगता था और मुसलमानों की हर जायज मांग पर तुष्टिकरण शब्द उछाल कर मुसलमानों को उनके अधिकारों से वंचित करने की हर मुमकिन कोशिश करता। लेकिन बिहार में इस बार यह चेहरा मुसलमानों को दुलारने में लगा था और दुलार कर उनका तुष्टिकरण करने से भी नहीं चूक रहा था।
लेकिन बिहार में भाजपा ही इस खेल में लगी थी, ऐसी बात नहीं है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मुसलमानों को पुचकारने में लगे रहे। मुसलमानों को खुश करने के लिए अपनी सहयोगी भाजपा को नाराज करने से भी वे नहीं चूके। कहां बहुत दिन हुए जब नरेंद्र मोदी के साथ विज्ञापन के तौर पर छपी एक तस्वीर को लेकर वे आगबबूला हो उठे थे। नाराजगी इतनी ज्यादा थी कि भाजपा के साथ उनका गठबंधन टूट के कगार तक पहुंच गया था। हालांकि यह वही नीतीश कुमार हैं जो राजग की रैली में उन्हीं नरेंद्र मोदी के साथ एक मंच से वोट मांगा था और हाथों में हाथ डाल कर फोटो खिंचवाई थी। गुजरात दंगों के समय भी नीतीश कुमार केंद्र में वाजपेयी सरकार में मंत्री थे। लेकिन तब उनके एजंडे पर मुसलमान नहीं था। इसलिए रेल मंत्री रहते हुए भी गोधरा में ट्रेन जलाए जाने की घटना की जांच कराने की उन्होंने जहमत नहीं उठाई न ही उन्होंने नरेंद्र मोदी के प्रायोजित हिंसा की कभी आलोचना की। आज भी उन दंगों पर वे कुछ नहीं बोलते लेकिन सियासत का जो चेहरा सामने वे रखना चाहते हैं वह चेहरा एक मुसलिम दोस्त का सा लगना चाहिए, इसका वे पूरा ख्याल रखते हैं क्योंकि बिहार में मुसलमानों का वोट उन्हें चाहिए। उन्होंने न सिर्फ मुसलमानों के नए मसीहा बनने की कवायद की बल्कि खुद को भाजपा से अलग दिखाने के लिए भी बेतरह हाथ-पांव चलाया।

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