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इस्लाम, अहिंसा और पशु-पक्षी से प्रेम
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पंद्रह सौ वर्ष पूर्व अरब के रेगिस्तान से एक काफिला गुजर रहा था। काफिले के सरदार ने
एक उचित स्थान देख कर रात में पड़ाव डालने का फैसला किया। काफिले वालों ने अपना-अपना सामान ऊँटों पर से उतारा। कुछ देर आराम करके उन्होंने नमाज पढ़ी और खाना बनाने के लिए झाड़ियां और सूखी लकडि़याँ इकट्ठी करने लगे। थोड़ी देर में ही रेगिस्तान के इस भाग में दर्जनों चूल्हे रोशन हो गए।
कबीले के सरदार एक चूल्हे के पास पड़े पत्थर पर आकर बैठ गए और जलती हुई आग को देखने लगे। तभी उन्होंने देखा कि चूल्हे के बराबर में चींटियों का बिल है और आग की गर्मी से वे व्याकुल हो रही हैं। कुछ चींटियां बिल में जाने के लिए चूल्हे के आस-पास जमा हैं और कोई उचित रास्ता तलाश कर रही हैं।
सरदार से चींटियों की यह परेशानी न देखी गई। वह अपने स्थान से उठे और चीख कर बोले, आग बुझाओ, आग बुझाओ। उनके साथियों ने कोई प्रश्न किए बग़ैर तुरंत आग बुझा दी। सरदार ने जल्दी से पानी डालकर चूल्हे के स्थान को ठंडा किया। उनके साथी खाना बनाने का सामान समेटकर दूसरे स्थान पर चले गए। काफिले के ये सरदार थे हजरत मुहम्मद (सल्ल0)।
सहाबी जाबिर बिन अब्दुल्ला कहते हैं, एक बार ह. मुहम्मद के पास से एक गधा गुजरा जिसके चेहरे को दागा गया था और उसके नथुनों से खून बह रहा था। हुजूर को गधे को दुख देखकर बड़ा क्रोध आया और आपने कहा, उस पर धिक्कार जिसने यह हरकत की। आपने घोषणा करा दी कि न तो पशुओं के चेहरे को दागा जाए, ना ही चेहरे पर मारा जाए।
याहया इब्ने ने लिखा है, एक दिन मैं हजरत मुहम्मद (सल्ल0) के पास बैठा हुआ था कि एक ऊँट दौड़ता हुआ आया और घुटने टेक कर आपके सामने बैठ गया। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। हजरत मुहम्मद (सल्ल0) ने मुझसे कहा, जाओ देखो, यह किसका ऊँट है। इसके साथ क्या हुआ है?
मैं उस ऊँट के मालिक की तलाश में निकला और उसे बुलाकर हजरत मुहम्मद (सल्ल0) के पास ले आया। आपने उससे पूछा, यह तुम्हारे ऊँट का क्या हाल है? उसने उत्तर दिया मुझे पता नहीं। हम इससे पहले काम लेते थे, खजूर के बागों में इस पर लादकर पानी दिया करते थे। अब यह बूढ़ा हो चला है, काम के लायक नहीं रहा। इसलिए कल रात ही मशविरा किया कि इसे काटकर इसका गोश्त बाँट देते हैं।
आपने कहा, इसे काटो मत, या तो मुझे बेच दो या मुफ्त दे दो। वह सहाबी बोले, आप इसे बगैर कीमत के ही ले लें। आपने उस ऊँट पर सरकारी निशान लगाकर उसे सरकारी जानवरों में शामिल कर लिया।
एक बार सहाबी अब्दुल्ला बिन उमर ने देखा, कुछ लड़के एक चिडि़या को बाँधकर निशाना लगा रहे थे। उमर को देख कर वे इधर-उधर भाग गए। तब सहाबी अब्दुल्ला बिन उमर ने कहा, उस व्यक्ति के लिए धिक्कार है जो किसी जीव को निशाना बनाए। हजरत मुहम्मद (सल्ल0) ने फ़रमाया है, अगर कोई व्यक्ति किसी गौरैया को बेकार मारेगा तो कयामत के दिन वह अल्लाह से फरियाद करेगी कि ऐ रब, इसने मुझे क़त्ल किया था।
हजरत मुहम्मद (सल्ल0) ने जानवरों से उनकी शक्ति से अधिक काम लेने और उन्हें भूखा-प्यासा रखने से भी मना किया है। एक बार हजरत मुहम्मद (सल्ल0) ने देखा कि एक काफिला कहीं जाने की तैयारी कर रहा था। एक ऊँट पर इतना बोझ लाद दिया गया था कि उसके भार से वह व्याकुल हो गया। आपकी नजर उस पर पड़ी तो आपने तुरंत उसका बोझ कम करने को कहा। इन तारीखी हक़ीक़तों से पता चलता है कि इस्लाम में मनोरंजन के लिए किसी जीव की हत्या करना पाप है। हजरत मुहम्मद (सल्ल0) ने नन्हीं सी चींटी, धरती पर रेंगने वाले जानवरों, बेजुबान पक्षियों और पशुओं -सभी पर दया करने को कहा है। अब सवाल ये पैदा होता है के किया इस्लाम किसकी इंसान को नुकसान पुहुचाने की इजाज़त दे सकता है । इस्लाम को आतंकबाद का धर्म कहने वालों को अपनी मानसिकता बदलने की ज़रोरत है ।
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