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दया, रहम और करुणा की बात करने वाला इस्लाम जानवरों की क़ुरबानी का हुक्म कियों देता है

Salman Ka Blog
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दया, रहम और करुणा की बात करने वाला इस्लाम जानवरों की क़ुरबानी का हुक्म कियों देता है

हजरत मुहम्मद ने कहा, जिसके मन में दयाभाव नहीं, वह अच्छा मनुष्य नहीं हो सकता। इसलिए दया और सहानुभूति एक सच्चे मुसलमान के लिए जरूरी है। इस्लाम में जमीन पर रेंगने वाली चींटी की भी अकारण हत्या करने को पाप बताया गया है।

हजरत मुहम्मद ने सचमुच लोगों को प्रेम और शांति से जीना सिखाया। अगर इस्लाम के दर्शन का गहन अध्ययन किया जाए तो इसकी बुनियाद में दया और करुणा नजर आती है। हजरत मुहम्मद ने स्पष्ट किया है, तुम इस पृथ्वी के सभी जीव-जंतुओं पर दया करो, परमात्मा तुम पर दया करेगा। तस्वीर साफ है कि इस्लाम मनुष्यों के साथ-साथ समस्त जीव- जंतुओं के लिए भी दया का पाठ पढ़ाता है।

लेकिन सवाल उठता है कि जब इस्लाम जीव- जंतुओं के साथ दया और रहम की बात कहता है, तो फिर मुसलमान पशुओं की हत्या कर उनका मांस क्यों खाते हैं? वे भी जैनियों और बौद्धों की तरह शाकाहार को क्यों नहीं अपना लेते, ताकि उन जीवों को भी जीवित रहने का अधिकार मिले।

इस्लाम के मुताबिक किसी भी मुसलमान के लिए यह जरूरी नहीं कि वह मांस खाए। अगर कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से शाकाहार ग्रहण करता है तो कोई हर्ज नहीं, वह मुसलमान बना रहेगा, इस्लाम से बाहर नहीं हो जाएगा।

लेकिन इसी के साथ इस्लाम यह भी मानता है कि इंसान शुरू से ही मांसाहार और शाकाहार कर रहा है। अल्लाह ने करोड़ों- खरबों मछलियां, पक्षी, भेड़- बकरियां, ऊंट- घोड़े सब किसी न किसी काम के लिए ही पैदा किए हैं। जहां ये हमें दूध, अंडे, फर और चमड़ा देते हैं, वहीं आहार भी देते हैं। इनका उचित उपयोग नहीं होने से पर्यावरण का संतुलन नष्ट हो जाएगा।

इस्लाम के मुताबिक मनुष्यों की एक बहुत बड़ी आबादी को आहार के लिए अन्न और फल की जगह यही उपलब्ध है। एस्कीमो और सागर तटों पर रहने वाली सैकड़ों जातियों का भोजन ही मछली और दूसरे जलचर हैं। कई इलाके तो ऐसे हैं जहां कोई शाक- सब्जी पैदा नहीं होती और लोगों को जिंदा रहने के लिए जानवरों के मांस, हड्डी, फर और चिकनाई पर ही गुजारा करना पड़ता है। इसी प्रकार अरब के मरुस्थल में ऊंट और बकरी से दूध और मांस के साथ-साथ तंबुओं और जूतों के लिए चमड़ा भी प्राप्त किया जाता था। अरबों की अर्थव्यवस्था पूर्ण रूप से इन्हीं पशुओं पर निर्भर थी।

इसलिए इस्लाम जरूरत के हिसाब से इंतजाम की मनाही नहीं करता, लेकिन वह क्रूर व्यवहार का सख्त विरोध करता है। इस्लाम किसी भी जीव को जिंदा आग में जलाने, मनोरंजन के लिए हत्या करने, उन पर जरूरत से अधिक बोझ डालने, दूध पिलाने वाली मादा की हत्या करने, पक्षियों के अंडे या घोंसले तोड़ने या किसी जीव को तड़पा-तड़पा कर मारने को धर्म विरोधी कार्य मानता है।

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