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आईआईटी रुड़की में लड़कियों की इज्ज़तें नीलाम, परदे के खेलाफ़ चिल्लाने वाला मीडिया कियों है खामोश?

Salman Ka Blog
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आईआईटी रुड़की में लड़कियों की इज्ज़तें नीलाम, परदे के खेलाफ़ चिल्लाने वाला मीडिया कियों है खामोश?
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सलमान अहमद
salmanahmed70@yahoo.co.in

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कहते हैं सिक्षा जानवरों को भी अक़लमंद और समझदार बनादेती है लेकिन आज हालत ये होगई है के हमारे मुल्क की कुछ जनि मणि सिक्षा की संथाएं इंसानों को बेशर्म जानवर बनाने का काम कर रही हैं । और सबसे जियादा अफ़सोस की बात ये हैं के बुर्के और परदे के खेलाफ़ आसमान को सर पे उठा लेने वाला मीडिया बिलकुल खामूश है।

आईआईटी रुड़की में एक लिपिस्टिक लगाने के आयोजन ने हमारी संस्कृति को शर्मसार कर दिया है। आईआईटी रुड़की जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में सांस्कृतिक कार्यक्रम थॉम्सो-10 के दौरान की गई हरकत शर्मनाक ही कही जाएगी। इससे संस्थान की प्रतिष्ठा को तो ठेस पहुंची ही, छात्र-छात्राओं के बीच गरिमापूर्ण संबंधों की अपेक्षा को भी धक्का पहंुचा है। लिपिस्टिक लगाने के नाम पर की गई हरकतें अश्लीलता की हदें पार कर गई। ऐसे कार्यक्रमों पर लोगों की तीखी प्रतिक्रिया होनी स्वाभाविक ही है। रुड़की संस्थान प्रशासन अब आयोजकों को जिस तरह बचाने की कोशिशों में जुटा है, इससे उनके स्तर पर बरती गई लापरवाही साफ तौर पर नजर आ रही है। इसे इनफार्मल प्रोग्राम की श्रेणी में रखकर आईआईटी प्रशासन अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकता। ऐसे मामले में सख्ती बरतने की जरूरत है ताकि भविष्य में इस सबकी पुनरावृत्ति नहीं हो सके। इतना ही नहीं इससे दूसरे शिक्षण संस्थानों को भी सबक लेने की जरूरत है। उच्चकोटि की शिक्षण संस्थाओं पर सिर्फ विद्यार्थियों के कैरियर संवारने की जिम्मेदारी ही नहीं है, बल्कि उन्हें सभ्य और एक जिम्मेदार नागरिक बनाने की सीख देना भी उन्हीं की जिम्मेदारी है। इस तरह की शिक्षा उच्च स्तर पर भी दी जानी चाहिए। इसमें लापरवाही सांस्कृतिक संकट को तो जन्म देगी ही, अभिभावकों के बीच अविश्र्वास को भी गहरा करेगी। इस सबको कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता, इसलिए संस्थान को इस बारे में आगे से सचेत रहने की जरूरत है। अभी यह कार्य सांस्कृतिक गतिविधि के हिस्से के रूप में हुआ। आगे चलकर यह रैगिंग अथवा फ्रेशर्स पार्टी का हिस्सा नहीं बने इस पर संस्थान को गंभीरता से मंथन करने की जरूरत है। लिहाजा इस मसले पर सिर्फ लीपापोती नहीं, बल्कि सख्ती से अंकुश लगाने की जरूरत है, वरना वोह दिन दूर नहीं जब सिक्षा के नाम पर लड़कियों की इज्ज़तों की नीलामी एक आम बात बन जाएगी और बड़ी संथाओं में पढने वाली शायेद ही कोई लड़की अपनी आब्रो बचा पायेगी ।

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