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क्या दुनिया में कोई और समाचार नहीं था बाल ठाकरे के सिवा
शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे की मृत्यु को जिस तरह से भारतीय टीवी चैनलों पर दिखाया गया उसे मीडिया विश्लेषक शैलजा बाजपेई “कारपेट कवरेज” कहती हैं.
शैलजा जो की इन्डियन एक्सप्रेस समूह में काम करती हैं वो कहती हैं कि जिस तरह सीएनएन आईबीएन के राजदीप सरदेसाई और टाइम्स नाव के संपादक अरनब गोस्वामी सहित हिन्दी चैनलों के संपादक ठाकरे की अंतिम यात्रा के कवरेज पर पूरा दिन टीवी पर खुद बिताते हैं यह कितना जायज़ है.
शैलजा सवाल करती हैं, “क्या दुनिया में कोई और समाचार नहीं था बाल ठाकरे के सिवा, कोकराझाड़ की हिंसा का अभी तक कोई अंत नहीं हुआ है, संसद का एक महत्वपूर्ण सत्र शुरू होने वाला है, गजा और इसरायल के बीच का तनाव चरम पर है.”
इतना कवरेज़
शैलजा ठाकरे को दिए गए कवरेज पर टिपण्णी करती हुए कहते हैं कि “ठीक है क्लिक करें ठाकरे के विवादित पहलुओं पर टिप्पणियाँ थीं लेकिन क्या इतना ज़्यादा कवरेज़ और उनकी तारीफों के पुल कि वो निजी जीवन में बहुत ही अच्छे और ईमानदार आदमी थे यह कहना क्या सही है.”
एक और मीडिया समीक्षक सुधीश पचौरी कहते हैं “किसी आदमी के मरने के बाद उसकी बुराई मत करो यह सही है लेकिन उसके चरित्र को इतना निरमा मत लगाओ कि निरमा भी शर्मा जाए.”
पचौरी टीवी चैनलों पर आगे सवाल उठाते हुए कहते हैं ” मनमोहन सिंह जैसे कम बोलने वाले आदमी को तो आप फांसी दे दो लेकिन जो उग्र है उसके आप बधाए गाओ. यह कहाँ तक सही है.”
किसका डर
पचौरी आगे कहते हैं कि टीवी चैनलों के कवरेज को देख कर लगा कि चैनल “डरे हुए हैं और वो यह मान कर कवरेज़ कर रहे हैं क्लिक करें शिव सैनिकों में उग्र होने की क्षमता है. इसका अर्थ यह हुआ कि मनमोहन सिंह अगर कल से अपना डंडा तोड़ना और रूतबा दिखाना शुरू कर दें तो आप उनका भी प्रशस्ती गान शुरू कर दें.”
सुधीश पचौरी का यह भी मानना है की इस कवरेज़ से एक और संदेश आता है की मीडिया ऐसे लोगों को पसंद करता है जो की तानाशाह हों और किसी की ना सुनाता हो.
पचौरी कहते हैं ” मेरे मन में कोई दुराव नहीं है जो गुजर गया उसको क्या बोलना उससे तो इतिहासकार निपटेंगे लेकिन मीडिया तो बताई वो किससे डरा हुआ था किसे खुश करने की कोशिश कर रहा था ? बाल ठाकरे तो गुज़र गए क्या उनके समर्थकों को या बाज़ार को.”
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