Menu
blogid : 1807 postid : 74

अगर हिंदू राष्ट्रवाद सही है तो फिर भागवत की बात क्या गलत है?

Salman Ka Blog
Salman Ka Blog
  • 49 Posts
  • 95 Comments

हिंदू राष्ट्रवाद के एजंडे को लेकर जो राष्ट्रीय पार्टी है, उसमें प्रधानमंत्रित्व की दावेदार लोकसभा में विपक्ष की नेता एक स्त्री सुषमा स्वराज हैं।​ ​ भाजपा शासित राज्यों में सुषमा स्वराज, उमा भारती और वसुंधरा राज्य मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। यहीं नहीं, राम जन्मभूमि आंदोलन और बाबरी विध्वंस में भी उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा के नेतृत्व में दुर्गावाहिनी की काफी आक्रामक भूमिका रही है। अगर बतौर स्त्री आपको ​​नागरिक, मानव व लोकतांत्रिक अधिकार चाहिए तो मनुस्मृति व्यवस्था में वह असंभव है। देहमुक्ति आंदोलन का प्रस्थानबिंदु तो इसी ​​अनास्था से होनी चाहिए। पर आस्था में निष्मात होकर हिंदुत्व की जय जयकार करके हिंदुत्व के एजंडे के मुताबिक शास्त्र सम्मत संविधान, न्याय प्रणाली और कानून व्यवस्ता की मांग करने वालों के हिंदू परंपरा और धर्मशास्त्रों के मुताबिक दिये गये वक्तव्य से किसी स्त्री या पुरुष को आपत्ति क्यों होनी चाहिए पुरुषों का वर्चस्व और मौजूदा ग्लोबल बलात्कार की संस्कृति जिस पुररुषतंत्र के कारण है, हिंदू राष्ट्र तो उसी के लिए है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने अपनी टिप्पणियों से एक और नया विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा है कि पति की देखभाल के लिए महिला उसके साथ एक करार से बंधी होती है। कुछ दिन पहले उन्होंने यह कहकर विवाद खड़ा किया था कि बलात्कार जैसी घटनाएं ग्रामीण भारत में नहीं, बल्कि शहरी भारत में होती हैं। भागवत ने शनिवार को इंदौर में एक रैली में कहा, पति और पत्नी के बीच एक करार होता है, जिसके तहत पति का यह कहना होता है कि तुम्हें मेरे घर की देखभाल करनी चाहिए और मैं तुम्हारी सभी जरूरतों का ध्यान रखूंगा। देहमुक्ति का सपना देखने वाली वैश्वीकरण के भारत में २१ वीं में जीने वाली स्त्री हिंदू राष्ट्रवाद से किस हद तक प्रभावित है, गुजरात दंगों में ​​स्त्री की भूमिका से स्पष्ट है। वैसे भी धर्म कर्म, पूजा पाठ, प्रवचन इत्यादि कर्मकांड में पुरोहित के अधिकार से वंचित औरतें बतौर यजमान सबसे सक्रिय होती हैं। बंगाल में दुर्गोत्सव को सांस्कृतिक उत्सव के तौर पर धर्मनिरपेक्षता का माडल बतौर प्रस्तुत करने में प्रगतिशील वामपंथी ​​सबसे आगे हैं । भारतीय फिल्मों में दुर्गोत्सव के दौरान सिंदुर खेला को कापी रंगीन गौरवमय तरीके से अक्सर प्रस्तुत किया जाता है। लेकिन दुर्गापुजा के भोग और दूसरे कर्मकांड में न सिर्फ अब्राह्मणों बल्कि ब्राह्मण स्त्रियों का कोई अधिकार नहीं होता। मालूम हो कि आधुनिक और प्रगतिशील होने के बावजूद बंगाल में कोई स्वतंत्र स्त्री संगठन का वजूद कम से कम हमें नहीं मालूम है। स्त्रियां यहां पुरुषतांत्रिक राजनीति के मुताबिक पार्टीबद्ध होकर अपने सामाजिक सरोकार पर बातें करती हैं, यह भी एक तरह का सिंदूर खेला है।

हिंदुत्व के किसी भी कर्मकांड में स्त्री का अधिकार शास्त्रविरुद्ध है। स्त्री की चरित्र और उसकी अनुशासित भूमिका शास्त्रों के मुताबिक बड़े गौरवान्वित ढग से परिभाषित है। मोहन भागवत जो कह रहे हैं , वह शास्त्रसम्मत विधान ही तो है! अगर आप हिंदू राष्ट्रवाद का विरोध नहीं करते तो उनके वक्तव्य पर क्यों विरोध करना चाहिए?भागवत के इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए माकपा नेता वृंदा करात ने एकदम सही कहा है ` मुझे नहीं लगता कि इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक है। जब भाजपा सत्ता में थी तो यही लोग मनुस्मृति पर आधारित कानून बनाना चाहते थे। उन्होंने सिर्फ अपनी विचारधारा प्रदर्शित की है।’

भागवत का पहला वक्तव्य आकस्मिक हो सकता है। उस पर कड़ी प्रतिक्रिया हुई थी और भाजपाई भी राजनीतिक तौर पर फंसे हुए महसूस ​​कर रहे थे। ऐसे में अब जो वक्तव्य उन्होंने दिया है, वह हिंदुत्व की अवधारणा के मुताबिक ही है। हिंदूराष्ट्र को सती सावित्री और अग्निपरीक्षा ​​में उत्तीर्ण होने वाले स्रियों का संसार चाहिए, यह उन्होंने अपने दूसरे वक्तव्य से प्रमाणित कर दिया है। अगर आपको इस वक्तव्य पर आपत्ति है तो वर्म व्यवस्था, स्त्री को शूद्र और दासी बनाने वाले हिंदुत्व का अनिवार्यतः विरोध करना चाहिए। अगर आप ऐसा करने के लिए तैयार नहीं है तो कृपया बागवत का विरोध न कीजिये। हिंदू धर्म शास्त्रों और परंपरा के मुताबिक उन्होंने कोई गलत नहीं कहा है। उनके वक्तव्य का विरोध करते हुए तो आप हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्रवाद का ही विरोध कर रहे हैं।

पहले बलात्कार को लेकर विवादास्पद बयान देने वाले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अब विवाह को लेकर विवादित टिप्पणी की है। भागवत ने अब विवाह संस्था पर सवाल खड़े करते हुए शादी को एक सौदा बताया है। भागवत ने पति-पत्नी के रिश्ते को समझौता करार देते हुए कहा है कि जब तक यह रिश्ता निभा सकते हो निभाओ वरना अलग हो जाओ। भागवत ने कहा कि पति और पत्नी एक समझौते के तहत एक दूसरी की ज़रूरतों को पूरा करते हैं. “पति कहता है कि मेरा घर संभालो सुख दो, मैं तुम्हारा पेट पालने की व्यवस्था करूंगा और तुमको सुरक्षित रखूंगा, जब तक पत्नी ऐसी है तब तक पति कांट्रैक्ट पूरी करने के लिए उसको रखता है”।

उन्होंने कहा, ‘विवाह एक सामाजिक समझौता है। यह `थ्योरी ऑफ सोशल कांट्रैक्ट` है, जिसके तहत पति-पत्नी के बीच सौदा होता है, भले ही लोग इसे वैवाहिक संस्कार कहते हैं।’ उन्होंने कहा कि यह ऐसा सौदा है, जिसमें पत्नी से कहा जाता है, ‘तुम घर चलाओ और मुझे सुख दो’।

संघ प्रमुख मोहन भागवत के बाद अब विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल ने भी महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध के लिए पश्चिमी देशों की जीवनशैली को जिम्मेदार ठहराया है। चेन्नई में साधु-संतों के एक सम्मेलन में अशोक सिंघल ने कहा कि हमने शहरों में अपनी संस्कृति खो दी है। सिंघल के मुताबिक देश को भारत नाम से ही पुकारा जाना चाहिए क्योंकि हजारों साल पुरानी संस्कृति भारत में ही बसती है।

पूर्व के बयान

‘दुष्कर्म की घटनाएं इंडिया [शहरों] में होती हैं, भारत [गांवों] में नहीं।’- मोहन भागवत

‘सीताजी [महिलाएं] ने लक्ष्मण रेखा पार की तो रावण उनका हरण कर लेगा।’ – कैलाश विजयवर्गीय [मध्य प्रदेश के उद्योग मंत्री]

महिलाओं के पाश्चात्य रहन-सहन हर तरह के यौन उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार हैं। विदेशी संस्कृति हमारी सभ्यता का दुश्मन है।

-अशोक सिंघल, अंतरराष्ट्रीय सलाहकार, विहिप

भागवत ने इंदौर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की रैली के दौरान कहा, ‘वैवाहिक संस्कार के तहत महिला और पुरुष एक सौदे से बंधे हैं, जिसके तहत पुरुष कहता है कि तुम्हें मेरे घर की देखभाल करनी चाहिए और तुम्हारी जरूरतों का ध्यान रखूंगा। इसलिए जब तक महिला इस कान्ट्रैक्ट को निभाती है, पुरुष को भी निभाना चाहिए। जब वह इसका उल्लंघन करे तो पुरुष उसे बेदखल कर सकता है। यदि पुरुष इस सौदे का उल्लंघन करता है तो महिला को भी इसे तोड़ देना चाहिए। सब कुछ कान्ट्रैक्ट पर आधारित है।’रैली के दौरान भागवत ने लोगों का आह्वान किया कि वे नेता, नीति, नारा, पार्टी, सरकार और अवतार की ओर देखना बंद करें। संघ को भी समाज उद्घार का ठेका न दें। समाज खुद अपनी समस्याओं का हल करे। भागवत ने रविवार दोपहर इंदौर में मालवा प्रांत के स्वयंसेवकों के सबसे बड़े एकत्रीकरण को संबोधित किया। जिसमें इंदौर-उज्जैन संभाग के करीब एक लाख बीस हजार स्वयंसेवक शामिल हुए।

भागवत के मुताबिक, सफल वैवाहिक जीवन के लिए महिला का पत्नी बनकर घर पर रहना और पुरुष का उपार्जन के लिए बाहर निकलने के नियम का पालन किया जाना चाहिए। महिला और पुरुष में एक दूसरे का ख्याल रखने का कांट्रैक्ट होता है। अगर महिला इसका उल्लंघन करती है तो उसे बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए।

गौरतलब है कि संघ प्रमुख भागवत ने इस्लामी विवाह व्यवस्था पर हमला करते हुए कहा है कि उस व्यवस्था में पत्नी अगर घर का कामकाज नहीं करती है तो पति उसे छोड़ सकता है।भागवत ने कहा, ‘सोशल कॉन्ट्रैक्ट के सिद्धांत’ को मानने वालों की नजर में शादी एक तरह का ‘सौदा’ है जिसमें पत्नी अपने पति की देखभाल करने की जिम्मेदारी से बंधी होती है। इसके तहत पति पत्नी से कहता है कि तुम्हें मेरे घर का ख्याल रखना चाहिए और मैं तुम्हारी सभी जरूरतों का ख्याल रखूंगा। मैं तुम्हें सुरक्षित रखूंगा। जब तक पत्नी इस कॉन्ट्रैक्ट का पालन करती है तब तक पति उसके साथ रहता है। अगर पत्नी कॉन्ट्रैक्ट को तोड़ती है तो पति उसे छोड़ सकता है।’गौरतलब है कि इस्लाम में शादी व्यवस्था को एक सोशल कॉन्ट्रैक्ट माना जाता है।

हिंदुत्व के प्रमुख धर्माधिकारी होने के बावजूद हिंदू विवाह पद्धति और शास्त्रों के हवाले तक सीमित होने के बजाय उन्होंने इस्लाम का सहार क्यों लिया क्या इसलिए कि हिंदुत्व के मुताबिक स्त्री का धर्म कर्म अशुद्ध है और वह पाप योनि है? स्त्री नरक का द्वार है? क्या इसलिए कि उनका हिंदुत्व​ ​ स्त्री को विधर्मी म्लेच्छ समझता है या फिर देहमुक्ति की मांग करनेवाली, अपनी सुरक्षा और स्वतंत्रता की मांग करने वाली हर स्त्री उनकी​ ​ नजर में विधर्मी म्लेच्छ है?क्या वे पितृतांत्रिक प्रमाली के तहत लक्ष्मणरेखा पार करने वाली स्त्री के विरुद्ध हुए हर तरह के उत्पीड़ने के लिए उसे दुस्साहस और अनुशानहीनता को ही जिम्मेवार नहीं ठहरा रहे हैं?

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh